कोटा के अंदर कोटा पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने किया पं. नेहरू की चिट्ठी का जिक्र, जानिए 1961 के उस लेटर में क्या लिखा है
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कोटे में कोटा दिए जाने की मंजूरी दी है. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया.
कोर्ट का कहना था कि SC-ST कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बना सकते हैं और इस श्रेणी में अति पिछड़े तबके को अलग रिजर्वेशन दिया जा सकता है. यानी अब राज्य सरकारों के पास अधिकार होगा कि वे SC-ST वर्ग में शामिल समुदायों के लिए आरक्षित कोटे में से जातियों के पिछड़ेपन के आधार पर कोटा तय कर सकते हैं. इस बीच, सुनवाई के दौरान जस्टिस पंकज मिथल ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उस चिट्ठी का भी जिक्र किया, जो 1961 में लिखी गई थी. जानिए पंडित नेहरू ने उस चिट्ठी में क्या लिखा था?
सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी का नाम शामिल था. हालांकि, जस्टिस त्रिवेदी ने फैसले पर असहमति जताई और कहा, आर्टिकल 341 के तहत अधिसूचित एससी-एसटी वर्ग की सूची में राज्य सरकार द्वारा बदलाव नहीं किया जा सकता है. सब कैटेगरी इस सूची से छेड़छाड़ करने जैसी होगी.
SC जज ने नेहरू के 1961 के पत्र का दिया हवाला
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत की और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के 1961 के एक पत्र का जिक्र किया. इस पत्र में पंडित नेहरू ने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था.
‘आर्थिक आधार पर मदद की जरूरत’
जस्टिस मिथल ने कहा, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 27 जून, 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताते हुए कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार है, लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में.
‘पिछड़ों की मदद का सही तरीका उन्हें अच्छी शिक्षा देना’
नेहरू ने पत्र में आगे लिखा था, मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने. जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं. किसी पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा के अवसर देना है, इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो ज्यादा से ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है. बाकी सब कुछ किसी ना किसी प्रकार की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरी की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है.
एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि राज्यों को संवैधानिक रूप से अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है, जो सामाजिक और शैक्षिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण देने के लिए एक सामाजिक रूप से विषम वर्ग का गठन करती है।
जस्टिस मिथल ने बेंच के फैसले पर सहमति जताई और कहा, देश में आरक्षण के इतिहास से पता चलता है कि आरक्षण नीति को बढ़ावा देकर सामाजिक न्याय लाने के लिए राज्य के तीनों अंगों ने जबरदस्त प्रयास किए हैं. उन्होंने कहा, यह अनुभव की बात है कि सरकारी सेवाओं में चयन और नियुक्ति तथा उच्च स्तर पर प्रवेश की हर तरह की प्रक्रिया को अन्य बातों के साथ-साथ आरक्षण के नियम के दुरुपयोग के आधार पर अदालतों के समक्ष चुनौती दी गई है.
जस्टिस पंकज मिथल का कहना था कि ज्यादातर मामलों में नियुक्तियां और दाखिले मुकदमेबाजी के कारण वर्षों तक अटके रहते हैं, इससे भर्ती प्रक्रिया में बहुत देरी होती है और रिक्तियां लंबे समय तक नहीं भर पाती हैं, जिससे स्टॉप-गैप/एड हॉक अपॉइंटमेंट को बढ़ावा मिलता है.
उन्होंने कहा, आरक्षण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और एक दोषरहित सिस्टम विकसित करने में राज्य के तीनों अंगों द्वारा पर्याप्त समय और ऊर्जा खर्च की गई है. यह रिकॉर्ड की बात है कि आरक्षण समर्थक आंदोलनों और आरक्षण विरोधी आंदोलनों में कभी-कभी पूरे देश की शांति व्यवस्था भंग हो गई थी. विशेषकर 1990 में मंडल आयोग विरोधी आंदोलन के दौरान अधिकांश राज्यों में बड़े पैमाने पर अशांति देखी गई. खासकर 1990 के अगस्त-नवंबर के महीनों में ऐसे आंदोलनों और प्रदर्शनों से जो अशांति पैदा हुई, वो व्यापक हिंसा का पर्याप्त संकेत है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने व्यवसाय या सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के आधार पर पहचान करने की बजाय जातियों के उत्थान को आधार बनाया. यही कारण है कि आज हम आरक्षण के प्रयोजन के लिए अधिसूचित जातियों के सब कैटेगरी की स्थिति से जूझ रहे हैं. अनुभव से पता चलता है कि पिछड़ों में से जो वर्ग बेहतर स्थिति में है, वो अधिकांश आरक्षित रिक्तियों/सीटों को खा जाता है. सबसे पिछड़े वर्ग के हाथ में कुछ भी नहीं आता है.