बनारस के फक्कड़पन में यह फकीर भी रम गया… PM मोदी के 10 साल, काशी के लिए स्वर्णिम काल
नई दिल्ली. 2014 में नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से नामांकन भरते हुए कहा था कि यहां मुझे न किसी ने भेजा है, न मैं यहां आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है. नरेन्द्र मोदी का ये बयान वाराणसी वासियों के दिल में ऐसा बैठा की आज 10 साल बाद भी काशी वासी उनके नाम की माला जपते नहीं थकते हैं. पीएम मोदी ने खुद को प्रधान सेवक बताते हुए वाराणसी के कायाकल्प का जो बीड़ा उठाया था वो आज यथार्थ बन कर देश के सामने आ गया है. कितने कालखंड निकले, कितनी सल्तनतें बनीं और मिट्टी में मिल गईं, लेकिन काशी बनी रही और अपनी छटा बिखेरती रही. 2014 में पीएम बनने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी अड़चन राज्य में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार थी. विकास के नाम पर शुरू की गई परियोजनाएं, घाटों के कायाकल्प, सड़कों का चौड़ीकरण और वाराणसी को क्योटो बनाने के पीएम मोदी के सपने को पूरा करने में काफी बाधाएं आ रहीं थीं.
लेकिन 2017 में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सत्ता में आयी. योगी मुख्यमंत्री बने. फिर क्या था… विकास की गाड़ी सरपट दौड़ चली. 10 सालों में काशी पर डबल इंजन की सरकार ने करीब 1 लाख करोड़ रुपए खर्च किए. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर पर करीब 1000 करोड़ रुपए खर्च हुए. काशी में पर्यटन के आकार को विस्तार देने के लिए सारनाथ पर भी करीब 130 करोड़ रुपए खर्च किए गए. गंगा विहार के जरिए पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गंगा में क्रूज बोट चलवाए गए, जिससे जल परिवहन और व्यवसाय को भी बढ़ावा मिला. काशी में पर्यटकों को ठहरने में और आम लोगों को भी मुश्किलों से बचाने के लिए काशी में 293 करोड़ रुपए खर्च करके 10 विद्युत उपकेंद्र खोले गए. काशी विश्वनाथ, सारनाथ समेत तमाम योजनाओं में जिन श्रमिकों ने काम किया उनका भी प्रधानमंत्री ने सम्मान तो किया ही, लेकिन साथ में इन्हें बनाने वाले श्रमिकों के लिए भी 20 से ज्यादा योजनाएं चलाई गईं.
काशी में विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के लिए पीएम मोदी को सदियों तक याद किया जाएगा क्योंकि काशी विश्वनाथ सिर्फ एक ज्योतिर्लिंग नहीं है, बल्कि ये भारत के 5000 सालों के बनते बिगड़ते इतिहास का गवाह है. इतिहास साक्षी है कि बाबा की इस नगरी पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने कई आक्रमण किए. यहां की सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की. यहां कि संकरी पतली गलियां काशी की संस्कृति से ज्यादा वहां की छुपी हुई संस्कृति की गवाह रहीं हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस बेहद कठिन काम को करके देश को पहली बार आस्था और विश्वास की ऐतिहासिक विरासत का विश्वरूप दिखाया. फिर क्या था. इसी तर्ज पर उज्जैन में भी कॉरिडोर का निर्माण हुआ और कई प्राचीन तीर्थ स्थलों में काशी विश्वनाथ के मॉडल पर काम जारी है.
मोदी 2.0
2019 में पीएम मोदी ने चुनावों के दौरान वाराणसी में कहा था कि 5 साल पहले जब मैंने काशी में कदम रखा तो कहा था कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है. मैया ने मुझे इतना दुलार दिया, भाइयों और बहनों ने इतना प्यार दिया कि बनारस के फक्कड़पन में यह फकीर भी रम गया. जनता ने उन्हें भारी बहुमत से जीता कर फिर से पीएम पद की शपथ लेने भेज दिया. काशी की जनता ये भली भांति जान चुकी है कि इतिहास के कई कालखंडों में जो हुआ अब वो दौर आने वाला नहीं है. पीएम मोदी ने ऐसी कमान संभाली है जो काशी वासियों को एक ही संदेश दे रही है कि जो विकास काशी का हो रहा है वो अतुलनीय है.
हम विकास के कामों को टुकड़ों में नहीं बांट सकते. जो काम 2014 में शुरु किए गए, वो एक के बाद एक पूरे होते रहे और काशी का स्वरूप बदलता गया. एक निरंतरता थी जो पीएम मोदी के ऐलान में नजर आती है कि जो शिलान्यास वो करते हैं, उसको राष्ट्र को समर्पित भी वही करते हैं. तभी तो काशी के घाटों का कायाकल्प तो दुनिया के सामने एक मिसाल है. घाटों की सफाई और सौंदर्यीकरण ने तो इन्हें एक पर्यटन स्थल बना दिया है. नमो घाट पर अब तक 77 करोड़ तो खर्च हो गया है, लेकिन काशी वासियों के लिए एक पिकनिक स्थल तैयार हो गया है. गोदौलिया घाट से दशाश्वमेध घाट सड़क और भवनों के सौदर्यीकरण पर 13 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं. सीएसआर के तहत 10 घाटों के सौंदर्यीकरण पर भी करोड़ों रुपये लगाए जा चुके हैं.
सड़कों और फ्लाईओवरों के निर्माण में जिस तेजी से काम हुआ है वो आजादी के 75 सालों के इतिहास में देखा नहीं गया. पीएम मोदी के दस सालों की मेहनत से काशी जगमग हो गयी है. हर घर बिजली का कनेक्शन पहुंचने से यहां के हर गरीब का भाग्य चमक गया है. काशी वासियों को 24 घंटे बिजली, हर गरीब के घर बचत वाली रोशनी, 8 एलईडी काशी की जनता के बीच बांटे गए. इससे गरीबों के 24 करोड़ रुपये ही नहीं बचे बल्कि बिजली की खपत में भी 24 करोड़ रुपयों की कमी आयी.
सरकारी योजनाओं से श्रमिकों का सशक्तिकरण हुआ. काशी में स्वरोजगार के लिए 10 से ज्यादा लोन योजनाएं चलाई जा रही हैं. मुद्रा लोन योजना के तहत 1 लाख 83 हजार लोगों को 1 हजार करोड़ से ज्यादा लोन दिया गया. रोजगार की तमाम योजनाओं के माध्यम से कुल 57,000 करोड़ रुपए का ऋण दिया गया. जिला उद्योग केंद्र ने काशी में 74 हजार से ज्यादा उद्योगों की स्थापना की, जिससे 3 लाख 25 हजार लोगों को रोजगार मिला. रोजगार मेलों के माध्यम से भी 55 हजार को रोजगार मिला. इसके अलावा 4 हजार 700 जॉब कार्ड से इतने ही लोगों को 100 दिन का रोजगार मिला.
मोदी 3.0
2024 में एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा कि मैं जब 2014 में काशी गया तो नामांकन के बाद ऐसे ही मीडिया के लोगों ने मुझे पकड़ा तो मेरे मुंह से ऐसे ही एक भाव निकल गया. आप देखेंगे उस समय मैं तैयार नहीं था, ऐसे ही मेरे मुंह से अचानक निकल गया. मैंने कहा- देखिए भाई, ना मैं यहां आया हूं, ना मुझे किसी ने भेजा है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, ‘लेकिन आज 10 साल के बाद मैं पूरे भावुकता के साथ कह सकता हूं. उस समय मैंने कहा था कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है, आज मुझे लगता है कि मां गंगा ने मुझे गोद लिया. उन्होंने कहा कि 10 साल बीत गए. काशी से इतना नाता जुड़ गया कि अब मैं कभी भी बोलता हूं तो यही कहता हूं- मेरी काशी. इसलिए एक मां बेटे के जैसा रिश्ता. वो रिश्ता है मेरा, मेरी काशी के साथ.
काशी से अपने नाते का बयान तो पीएम ने कर दिया, लेकिन एक बात और जो वो बार-बार करते रहे हैं वो है कि आज काशी विश्वनाथ धाम देश की गरिमा के अनुरूप हमारी पहचान की भव्य झांकी बन कर खड़ा है. दिव्य काशी और भव्य काशी के सपने को उन्होंने साकार कर दिखाया है. काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और अन्न क्षेत्र के निर्माण पर 963 करोड़ खर्च हुए तो पावन पथ (101 मंदिर) के निर्माणकार्य के तहत पर्यटन विकास पर 24.4 करोड़ खर्च किए गए. ये तो 10 सर्किट यात्राओं के अंतर्गत आता है. उधर पंचकोशी परिक्रमा पथ के निर्माण, काल भैरव मंदिर, संत रविदास मंदिर का पुनर्निर्माण पर भी पूरी ताकत झोंक दी गयी है.
पीएम मोदी के 10 साल के कार्यकाल में काशी विकास की नगरी के साथ साथ सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राजधानी बन गया है. काशी के लिए तो पीएम मोदी द्वारा किए गए कार्यों की लिस्ट अंतहीन है. खास बात ये भी है कि वाराणसी जीआई हस्तशिल्प का हब बन गया है. सुधर गया है वाराणसी के व्यापार का हाल, यही है मोदी के दस साल का कमाल. 2014 से पहले वाराणसी के सिर्फ 2 उत्पादों को जीआई टैग मिला था. लेकिन 2914 से 2024 तक वाराणसी के 21 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. वाराणसी से जुड़े 11 जिलों के 22 लाख लोगों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से जीआई उत्पादों से जुड़ कर लगभग 28.5 हजार करोड़ का वार्षिक कारोबार किया है. आलम ये है कि बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान, रामनगर भंट, आदमचीनी चावल को जीआई प्रमाणपत्र प्राप्त होने के कारण किसानों की आय में वृद्धि हुई है. 2014 से पहले कृषि निर्यात शून्य था और 2024 में ये 1424 मिट्रिक टन कृषि उत्पादों का निर्यात वाराणसी से हुआ.