Chhath Puja: छठ पूजा क्यों की जाती है? जानिए छठ पूजा का इतिहास क्या है?
Chhath Puja: छठ पूजा क्यों की जाती है? जानिए छठ पूजा का इतिहास क्या है?
त्योहारों के इस सीजन में अब समय आ गया है जब लोग छठ महापर्व का मनाने की अंतिम तैयारियों में लगे हुए हैं। हालांकि ये उलझन अब तक बनी हुई है कि महापर्व छठ की शुरुआत कब हो रही है? बता दें कि दिवाली के बाद छठ महापर्व मनाया जाता है। छठी मैया को समर्पित यह पर्व चार दिनों तक बड़े ही उत्साह, आनंद और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है।
छठ पूजा का त्योहार हिंदू धर्म के विभिन्न त्योहारों में से एक विशेष त्योहार है। छठ महापर्व भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है। इन राज्यों में विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि क्षेत्रीय विशेषता से परे आज छठ का त्योहार पूरे भारत समेत विश्व के कई बड़े देशों में मनाया जाता है। छठ महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है। महापर्व छठ के दौरान भगवान सूर्य देव और छठी मैया की उपासना एवं पूजा अर्चना की जाती है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है।
*>> महापर्व ‘छठ’ <<*
महापर्व छठ का त्योहार भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा के लिए समर्पित होता है। छठ पूजा में सूर्य देवता को जल अर्पण करने की परंपरा होती है, जो उगते और डूबते सूर्य को समर्पित होती है। छठ पूजा के दौरान श्रद्धालु व्रत रखते हैं और पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्य देव की उपसना में छठ पर्व चारों दिनों तक मनाया जाता है।
*>> छठ पूजा का इतिहास <<*
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है और इसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। इस पूजा को त्रेता युग में भगवान राम और माता सीता वहीं द्वापर युग में द्रौपदी के द्वारा भी करने का उल्लेख मिलता है। छठ पूजा का संबंध प्रकृति, सूर्य और जीवनदायिनी शक्तियों से होता है। यह त्योहार उन शक्तियों को सम्मानित करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा प्रियव्रत संतान ना होने से बेहद दुखी थें। उस समय महर्षि कश्यप ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने का उपाय सुझाया। राजा प्रियव्रत की पत्नी रानी मालिनी को यज्ञ में चढ़ाई गई खीर खाने को दी गई। इसके बाद रानी को पुत्र संतान की प्राप्ति हुई। लेकिन संतान मृत पैदा हुआ। इससे राजा बेहद दुखी हुए और पुत्र के शव को श्मशान घाट ले गए। पुत्र को खोकर उन्होंने अपने प्राणों को भी त्यागने का निर्णय लिया। ठीक उसी समय ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार भी करो।
उस दिन देवी षष्ठी के कहने पर राजा ने कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी की पूजा अराधना की। उन्होंने विधिवत व्रत रख देवी की उपासना की। इसके बाद उन्हें देवी की कृपा से पुत्र की प्राप्ति हुई। देवी की कृपा से पुत्र प्राप्ति से प्रसन्नचित्त होकर राजा ने राज्य के सभी निवासियों को देवी षष्ठी या छठी मैया के महत्व के बारे में बताया और उस दिन से देवी षष्ठी की अराधना में छठ पर्व मनाए जाने की शुरुआत हुई।
पुराणों में किए गए उल्लेख के अनुसार, आस्था का महापर्व यानी छठ पर्व भगवान राम और माता सीता ने भी किया। जब भगवान राम लंका के राजा रावण वध के बाद अयोध्या लौटे, तब उन्होंने छठी मैया की अराधना कर, विधिवत व्रत पालन किया। उन्होंने कुल की सुख-शांति और समृद्धि के लिए देवी षष्ठी और भगवान सूर्यदेव की उपासना की। वहीं महाभारत की कथा के अनुसार, द्वापर युग में जब पांडव अपना राज्य खो चुके थे और कठिनाइयों का सामना कर रहे थे, तब द्रौपदी ने राजपाट वापस पाने के लिए छठ पूजा का व्रत रखा था।
*>> छठ पूजा का महत्व <<*
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है। यह त्योहार न सिर्फ आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य और शुद्धता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। छठ पूजा में सूर्य देवता की उपासना से जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति की कामना की जाती है। छठ पूजा की विधि बेहद कठोर होती है और इसमें सच्ची श्रद्धा और नियमों का पालन जरूरी है।
*>> छठ पूजा की परंपराएं <<*
छठ पूजा में व्रत रखने वाले भक्त बिना अन्न और जल ग्रहण किए सूर्य की उपासना करते हैं। इस दौरान महिलाएं और पुरुष दोनों ही संध्या और उषा अर्घ्य देते हैं। प्रसाद में ठेकुआ, चावल और गन्ने का रस महत्वपूर्ण होते हैं। छठ पूजा के दौरान भक्त कठिन व्रत रखते हैं और स्नान के बाद उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पण करते हैं।
छठ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी शुद्धता और अनुशासन है। इस पूजा में किसी प्रकार की मूर्तिपूजा का स्थान नहीं होता, बल्कि सूर्य की उपासना की जाती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्रतधारी सख्त नियमों का पालन करते हैं, जिसमें स्वच्छता, शुद्धता और संयम प्रमुख हैं।
*>> छठ पूजा के मुख्य चरण <<*
• नहाय खाय: पहले दिन व्रतधारी गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करके शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं।
• खरना: दूसरे दिन व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
• संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन डूबते सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
• उषा अर्घ्य: चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके साथ ही व्रत समाप्त होता है।