‘निचली अदालत के जज कोई खतरा नहीं उठाना चाहते’, CJI चंद्रचूड़ ने क्यों कहा ऐसा?
बेंगलुरु. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि महत्वपूर्ण आपराधिक मामलों में, संदेह की गुंजाइश रहने की स्थिति में निचली अदालत के न्यायाधीश जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.
प्रधान न्यायाधीश ने प्रत्येक मामले की बारीकियों पर गौर करने के लिए सामान्य समझ और विवेक का इस्तेमाल करने की आवश्यकता पर बल दिया.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “जिन लोगों को निचली अदालतों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां जमानत नहीं मिल रही है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें हमेशा हाईकोर्ट का रुख करना पड़ता है.” उन्होंने कहा, “जिन लोगों को उच्च न्यायालयों से जमानत मिलनी चाहिए, जरूरी नहीं कि उन्हें जमानत मिल जाए और इस कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ता है. यह देरी उन लोगों की समस्या को और बढ़ा देती है जो मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं.”
वह ‘तुलनात्मक समानता और भेदभाव-रोधी बर्कले केंद्र के 11वें वार्षिक सम्मेलन’ के दौरान अपने भाषण के अंत में एक सवाल का जवाब दे रहे थे. यह सवाल, मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों के बारे में पूछा गया था. प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति ने कहा, “हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां पहले कृत्य किया जाता है और फिर बाद में माफी मांगी जाती है. यह बात विशेष रूप से उन लोक प्राधिकारियों के लिए सच हो गई है जो राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और यहां तक कि विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों समेत नेताओं को हिरासत में ले रहे हैं.”
उनके अनुसार, ये सभी कृत्य इस पूर्ण विश्वास के साथ किए जाते हैं कि न्याय बहुत धीमी गति से मिलता है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इसके जवाब में कहा कि सुप्रीम कोर्ट लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इसका एक कारण देश में संस्थाओं के प्रति अंतर्निहित अविश्वास भी है.
उन्होंने कहा, “दुर्भाग्यवश, आज समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों द्वारा दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं. इसका मतलब यह है कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों को प्रत्येक मामले की बारीकियों और सूक्ष्मताओं को देखना होगा. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामले सुप्रीम कोर्ट में आने ही नहीं चाहिए.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं ताकि पूरे देश में यह संदेश जाए कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे प्रारंभिक स्तर पर मौजूद लोगों (न्यायिक अधिकारियों) को यह विचार किये बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है.”