नज़ूल ज़मीन से जुड़ा बिल क्या है, जिसके ख़िलाफ़ योगी सरकार के विधायक ही विरोध में उतरे
नज़ूल भूमि पर उत्तर प्रदेश सरकार का बिल सुर्ख़ियों में है. विधानसभा में ये बिल पास हो गया लेकिन विधान परिषद में पेश करने के बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया है.
सरकार के भीतर ही इस बिल को लेकर अंदरूनी कलह सदन के भीतर दिखाई दी.
विधान परिषद में ख़ुद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने समिति को भेजने का प्रस्ताव दिया जिसे सभापति ने मान लिया.
बिल को केशव प्रसाद मौर्य ने विधानसभा में पेश किया था. हालांकि, इससे पहले मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्रियों के बीच बैठक में बिल को लेकर तमाम आशंकाओं पर बात हुई थी.
विधानसभा में बीजेपी के विधायक हर्ष वाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह ने अपनी आपत्ति ज़ाहिर की थी. इसके अलावा सरकार की सहयोगी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विरोध किया था.
सरकार को उस वक़्त परेशानी का सामना करना पड़ा जब इस बिल का विरोध ख़ुद उनके ही लोग करने लगे. उधर कांग्रेस ने धमकी दी थी कि इस बिल के ख़िलाफ़ पार्टी सड़क पर उतरेगी.
क्या है नज़ूल बिल, क्यों है विरोध?
इस बिल के लागू होने से नज़ूल की ज़मीन फ्री होल्ड नहीं की जा सकती है.
इलाहाबाद से विधायक हर्ष वाजपेयी का कहना है, ”सरकार एक या दो लोगों से ज़मीन ले ले तो फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन जो लोग ब्रिटिश काल से इन ज़मीनों पर रह रहे हैं, उनका क्या होगा, कई लोग 100 साल से रह रहे हैं. एक तरफ़ प्रधानमंत्री आवास दे रहे हैं, दूसरी तरफ़ हम लोगों से ज़मीन ले रहे हैं ये न्यायसंगत नहीं है.”
वाजपेयी के इस बयान के बाद विपक्ष ने उनकी सराहना तो की, लेकिन सरकार से मांग की कि इस ज़मीन को फ्री होल्ड कराने का मौका देना चाहिए.
वहीं दूसरे विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि सुझाव पर सरकार को तवज्जो देनी चाहिए और लीज़ को फिर से नवीनीकरण का मौक़ा देना चाहिए.
सरकार के बिल के मुताबिक़ नज़ूल की ज़मीन पर मालिकाना हक़ के लिए कोर्ट में लंबित सभी मामले ख़ारिज माने जाएंगे.
आलोचकों का कहना है कि इस बिल के ज़रिए सरकार नज़ूल की ज़मीन को रेगुलेट करना चाहती है जो सरकार के अधीन है पर सीधे सरकार के प्रबंधन में नहीं है. बिल के ज़रिए सरकार इसके ट्रांसफ़र को रोकना चाहती है.
इस बिल में सरकार के पास अधिकार है कि जिसका किराया सही समय पर जमा हो रहा है उसके लीज़ को बढ़ा सकती है, जिससे सरकार के पास इसका कंट्रोल बना रहेगा.
जिन लोगों नें फ्री होल्ड के लिए पैसा जमा किया है उनको ब्याज सहित पैसा वापस कर दिया जाएगा जो एसबीआई के हिसाब से होगा.
लीज़ की ज़मीन का रेंट जमा किया जा रहा है, शर्ते भी मानी जा रही हैं तो भी लीज़ ख़त्म होने पर सरकार ज़मीन वापस ले सकती है.
नज़ूल की ज़मीन का मालिकाना हक़ किसी को नहीं दिया जाएगा बल्कि सिर्फ सार्वजनिक इस्तेमाल किया जाएगा.
पहले सरकार नज़ूल की ज़मीन को 99 साल के लिए लीज़ पर देती थी.
सरकार के सहयोगियों ने भी किया है विरोध
सरकार के सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने भी बिल का विरोध किया है.
अनुप्रिया पटेल ने एक्स पर लिखा कि, ”नज़ूल भूमि संबधी विधेयक को विमर्श के लिए विधान परिषद की प्रवर समिति को आज भेज दिया गया है, व्यापक विमर्श के बिना लाए गए इस बिल के संबध में मेरा स्पष्ट मानना है कि ये विधेयक गैर-ज़रूरी आम जनमानस की भावनाओं के विपरीत भी है.”
पटेल ने मांग की कि ये विधेयक वापस लेना चाहिए और अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए.
वहीं निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद जिनकी पार्टी के विधायक ने इस बिल का विरोध किया था.
उनका कहना है कि लोग नदी के किनारे रह रहे हैं वो कैसे काग़ज़ दिखाएंगे और जब लोगों के बसाने की जगह दूसरा काम होगा तो लोग हमारे विरोध में खड़े हो जाएंगे.
इस सभी लोगों का समर्थन समाजवादी पार्टी ने और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया ने भी किया है.
समाजवादी पार्टी इस बिल को वापस लेने की मांग कर रही है. समाजवादी पार्टी का कहना है कि ये बिल जन विरोधी है.
सरकार की तरफ़ से संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने इस बिल का बचाव किया है उनका कहना था कि ‘बहुत सारे केस अदालत में लंबित हैं जो फ्री होल्ड की मांग कर रहे हैं. सरकार का हितों का नुक़सान हो रहा है. क्योंकि सार्वजनिक कामों के लिए सरकार को भी ज़मीन की ज़रूरत है.’
नज़ूल की भूमि क्या है?
यूपी में लगभग 25 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन नज़ूल की है, जिसको आमतौर पर लीज़ पर दिया जाता है. ये किसी व्यक्ति को या संस्था को दिया जाता है.
इन ज़मीनों पर लोग सालों साल से रह रहे हैं. ये लोग इस उम्मीद में हैं कि एक दिन ये फ्री होल्ड हो जाएगी लेकिन बिल के अमल में आ जाने से ऐसा नहीं हो सकता.
अभी तक नज़ूल की ज़मीन सिर्फ ट्रांसफ़र हो सकती है लेकिन उसका मालिकाना हक़ नहीं मिल सकता, वो सरकार के पास है.
दरअसल, आज़ादी से पहले ब्रिटिश हुक़ूमत किसी की भी ज़मीन ज़ब्त कर लेती थी जिसमें राजा से लेकर छोटे आदमी तक हो सकते थे लेकिन आज़ादी के बाद जो लोग इसके मालिकाना हक़ के कागज़ नहीं दिखा पाए वो ज़मीन सरकार की हो गई.
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